तड़पती धड़कन

20/11/2007 12:09

मेरी मुहब्बत थी वो मेरी जिन्दगी थी
मेरी पूजा थी वो मेरी वन्दगी थी,
बिछड़े तब जब मैं गुजारे जीवन को आया
जीने के लिए देखने रश्मे ज़माने को आया,
पड़ी बेड़ियाँ जैसे कैद-ए-वंदीशे हो
बने दुश्मन अपने जैसे कत्ले दरिंदे हो,
बने हमराज वो मेरे हमदम ही थे
उस वीराने में कागज कलम ही थे,
इन बेजुबानों पर भी वो ऐसे टूट पड़े
जैसे कोई शिकार को शिकारी जुट पड़े,
पड़ा तन्हाँ मैं टुटा तुझसे सारा नाता
काश ये सुनने से पहले मैं मर जाता,
की रश्मे मेहंदी है तेरी किसी और के साथ
दिल को जलाया मैंने शराब शोलो के साथ,
तेरी शादी में शरीक हुए मेरे अपने थे
उसी मंडप में खाक हुए मेरे सारे सपने थे,
मेरी ख्वाईश थी ताउम्र तेरे साथ जीऊँ
जुदा होकर कसम दी मैं कभी न पीऊँ,
पिये बगैर पगली कहीं की मैं जीऊँ कैसे
दिल के जख्मो को मैं अब सिऊँ कैसे,
तेरे दिल की धड़कन मेरी साँसों की डोर थी
तू कहती है मेरी किश्मत में कोई और थी,
मजबूर हूँ अब मैं ज़माने में सर छुपाने के लिए
सपनो के खण्डहर पर तिनको का घर बसाने के लिए,
लेकिन ये भी मुझे नशीब न हुआ
जाने किसकी लगी हमें बददुआ,
किस्मत दूर खड़ी मुँह चिढ़ाती है
दुनियाँ अब मुझे जिन सिखाती है,
आगे आगे वक्त चला पीछे रह गए हम
तन्हाँ कटी जिन्दगी कैसे समझ सके न हम,
खबर आई तुझे इन्तजार है मेरी वफ़ा की
संग शिकायत भी न किये किसी जफ़ा की,
जफ़ाएं दुश्मन करते हैं मैं तो तेरा यार था
मेरे दिल में तड़पता वो तेरा ही प्यार था,
साँसे ले रहा था मैं जिसके सहारे अबतक
मरूंगा नहीं मैं जी ना लूँ तेरे संग जबतक,
 
 
 
 

 
 

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विनोद कुमार सक्सेना

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